Śtāvadhāniracanāsaṃcayanam (Sanskrit poetry collection of Śtāvadhāni Dr. R. Ganesh) published by Sahitya Akademy.
साहित्य अकादमी ने आधुनिक संस्कृत के महान् कवियों में अन्यतम शतावधानी डॉ॰ रा॰ गणेश की ७ सुन्दर काव्यकृतियों “साप्तपदीनम्” का “शतावधानिरचनासञ्चयनम्” के नाम से प्रकाशन किया है। शतावधानी गणेश आधुनिक भावबोध से सम्पन्न अत्यन्त प्रौढ एवं ऊर्जस्वल कवि हैं। इनकी कविता के रसन से आधुनिक युग में संस्कृत के प्रति यत्किञ्चित् नैराश्य भी जाता रहता है। संस्कृत जनों के लिए यह संकलन अत्यन्त उपादेय है ही साथ ही जो भी जन समकालीन संस्कृत साहित्य में रुचि रखते हैं उन सबके लिए यह संग्रह अवश्य द्रष्टव्य है। पुस्तक के प्रारम्भ में कवि के आत्मकथ्य के बाद उनके रचनावैशिष्ट्य से सम्बन्धित लगभग २१ पृष्ठों का सम्पादकीय है (इसे https://www.academia.edu/…/%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A…
पर प्राप्त किया जा सकता है।)
संकलन में पद्यों को सुबोध तथा सुपरिचित बनाने के लिए लगभग ६०० टिप्पणियाँ जोड़ी गई हैं। पुस्तक की सुप्रस्तुति तथा उसे सर्वशुद्ध रूप में लाने में स्वयं कवि Ganesh Kavi तथा बन्धु शशिकिरण का अपूर्व योग रहा। वस्तुतः अधिकतर कार्य इन्हीं महानुभावों द्वारा किया गया। इस संकलन की परिकल्पना आचार्य Rdhavallabh Tripathi जी द्वारा की गयी थी। उन्हें धन्यवाद कि इस कार्य के लिए उन्होंने मुझे चुना– सम्भावनागुणमवैमि तमीश्वराणाम्। प्रूफ़ संशोधन के लिए मित्रों तथा छात्रों Aneesh Mishra Tekchand Pratihar सर्वेश त्रिपाठी Suhasini Mishra Kr Mohit Ganesh Tiwari के योगदान अविस्मरणीय हैं। सुन्दर तथा सुरुचिपूर्ण प्रकाशन के लिए साहित्य अकादमी के सम्बद्ध विद्वानों Kumar Anupam जी तथा अजय शर्मा जी का आभार।
मेरे लिए सौभाग्य तथा हर्ष का विषय है कि इस पुस्तक के माध्यम से संस्कृत के जीवित आश्चर्य शतावधानी रा॰ गणेश के साथ मेरा नाम जुड़ सका!
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शतावधानिनः रा॰ गणेशस्य सौरभ्यामृतस्यन्दिभ्यः काव्यारामेभ्यः समुच्चित्य समुच्चित्य सप्तानां काव्यगुच्छानां– सुमनोमयम्, अग्राम्यम्, उज्ज्वलज्वाला, भावयित्री, अनन्योक्तिः, मुक्ताशु (शू) क्तिः, शतावधानशक्वरी इत्यभिधानां संग्रहः ऐदम्प्राथम्येन प्रकाशमायाति साप्तपदीनमिति नाम्ना। शब्दार्थसौन्दर्यदृष्ट्या, भाषापरिपाकपरिपूर्णतया, प्रतिपदं संस्कृतसाहित्यस्य सहस्राब्दव्यापिसमृद्धपरम्परायाः प्रगाढं स्मारकत्वात् आधुनिकजागतिकभावावगाहकत्वाच्च अयं संग्रहः प्राचीनमाधुनिकं च संस्कृतकाव्यवाङ्मयं सीव्यतीव प्रतिभाति। सत्सु अपि एवंविधेषु सर्वेषु गुणेषु शतावधानिकृतिरियं कविवैशिष्ट्याधिक्यात् प्रायः पूर्वेषामपि काव्येभ्यः तत्र तत्र अतिरिच्यते। काव्यस्यास्यास्वादः प्रचुरप्रस्तुतनवरसरसनक्षण इव, विद्वदौषधपानमिव, पुराणकथारण्यरमणमिव इव, छन्दोवाटिकाविहरणम् इव, नवीनशब्दपरिचयोत्सव इव रसिकजनमनोभिः नितरां स्पृहणीयो भवति।
अद्य एव पठितुं सर्वाङ्गीणा सपृहा! कथमपि हस्तसात्करणीयम् । सम्पादकेन भवता महदुपकृता स्मः
रसिकशिरोमणये सुहासवर्याय नमः। धन्या वयम्।