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Archive for the ‘अनुष्टुब्’ Category

सहस्रनामभिः शौरे त्वामहं नित्यमाह्वये।

नाम्ना नैकेन मां स्तब्ध प्रतिवक्षि कदाचन॥

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कृष्ण,

मैं प्रतिदिन तुम्हें तुम्हारे हज़ारों नामों से पुकारता हूँ।

और तुम ऐसे ठस कि

मुझे एक नाम से भी कभी उत्तर नहीं देते।

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चित्र– श्रीविष्णुसहस्रनाम की लगभग १६९० ई॰ की पाण्डुलिपि (मेवाड़)

फ़ोटो का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.

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प्रेमारम्भेषु नौ योऽभूत् सान्द्रः स्त्यानो घनो रसः।

आजीवं व्यस्तरिष्याव तनूकृत्य तमेव चेत्! ||

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प्रेम के शुरू शुरू में

हम दोनों में

जो गाढ़़ा-घना रस था

काश,

उसी को घोल कर हम

अपने सारे जीवन में फैला सकते!

2 लोग और पाठ की फ़ोटो हो सकती है

1 व्यक्ति, दाढ़ी और खड़े रहना की फ़ोटो हो सकती है

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॥णमो अणेगंतवाअस्स॥

एकान्तकान्ते संश्रित्याप्यनेकान्तं ब्रवीषि चेत्।

प्रेमप्रश्नेऽथ, सा भङ्गी मत्कैवल्याय कल्पते।।

…………………….

तुम मेरे लिए नितान्त प्रिय हो

अगर प्रेम के बारे में मेरे प्रश्नों का

उत्तर तुम ‘शायद’ के साथ भी देती हो

तो तुम्हारी यह अदा

मुझे कैवल्य (मोक्ष) दिलाने वाली होगी।

…………………….

“O singularly beloved girl! Even if you answer in multiple ways to my love inquiry, it will result only in my Kavalya (Bliss/ me being of your soul).”

(Trans. by Dr. Shankar Rajaraman)

वह टेक्स्ट जिसमें 'May and May be not May be or may be not but in either case is inexplicable May be but who knowi May be not May be not who knows May be May be and may not but who know' लिखा है की फ़ोटो हो सकती है

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पञ्चतन्त्रकथा नास्ति वियोगरजनीकथा।

शतग्रन्थैर्नु जायेत तदेकाध्यायकल्पना।।

= विरह की आपबीतियाँ तोता मैना वाली छोटी मोटी कहानियाँ नहीं हैं

इसका तो एक-एक अध्याय सौ-सौ ग्रन्थों में सिमटने वाला है!

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अभी अमलतासों के खिलने का उत्सव है। संस्कृत में इसे ‘आरग्वध’ कहते हैं। कितना सुखद है अगर आप खिड़की खोलें और सामने खिला हुआ अमलतास हो-
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विशदे हृद्गवाक्षे या सद्यः सुलभदर्शना|
आरग्वधसुमाकारसौवर्णाङ्गीं स्तुवे प्रियाम् ||
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हृदय का वातायन खुलते ही
तुरन्त जिसके दर्शन हो जाते हैं।
अमलतास के फूलों जैसे सुनहरे अंगों वाली
ऐसी
प्रिया की स्तुति करता हूँ। 

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