सहस्रनामभिः शौरे त्वामहं नित्यमाह्वये।
नाम्ना नैकेन मां स्तब्ध प्रतिवक्षि कदाचन॥
––––
कृष्ण,
मैं प्रतिदिन तुम्हें तुम्हारे हज़ारों नामों से पुकारता हूँ।
और तुम ऐसे ठस कि
मुझे एक नाम से भी कभी उत्तर नहीं देते।
–––
चित्र– श्रीविष्णुसहस्रनाम की लगभग १६९० ई॰ की पाण्डुलिपि (मेवाड़)