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Archive for the ‘स्वोपज्ञ’ Category

फ़ारसी में एक धातु है बालीदन (بالیدن) जिसके दो अर्थ हैं १. शरीर के अवयवों का बढ़ना, बालिग़ होना, तथा २. नाज़ करना, अहंकार करना, गर्व करना। इसी तरह पेचीदन या पीचीदन (پیچیدن) धातु के भी दो अर्थ हैं– १. मुड़ना, पेंच या बल खाना, तथा २. व्याकुल होना, पछताना, परेशान होना। इन दोनों धातुओं के दोनों अर्थों का श्लिष्ट प्रयोग करके कवि बेदिल ‘देहलवी’ (1642-1720) अद्भुत कविता गढ़ी है।

‘बेदिल’ फ़ारसी कविता की भारतीय शैली के सबसे उत्कृष्ट कवि हैं। फ़ारसी के शब्दों के अर्थगौरव को जिस प्रकार उन्होंने समझा और उसका कविता में अनुप्रयोग किया है उतनी मात्रा में सारे फ़ारसी जगत् में कोई भी दूसरा कवि नहीं कर सका है। सुनते हैं कि वे संस्कृत कविता की परम्परा तथा अद्वैत वेदान्त से गहराई से वाक़िफ़ थे। यह बात सही भी है, अन्यथा श्लेषानुप्राणित उपमा का इतना हृदयावर्जक प्रयोग संस्कृत-प्राकृत और उसकी परम्परा के अतिरिक्त अन्य और कहाँ मिल पाता है। उनका शेर इस तरह है–

“ग़ुरूरे इज्ज़े दुनिया हुक्मे शाख़े आहुआन् दारद

तू हम चन्दान् कि बर ख़ुद बीश बाली, बीश्तर पीची”

[غرور عجز دنیا حکمِ شاخ آهوان دارد

تو هم چندان که بر خود بیش بالی، بیشتر پیچی]

= कुण्ठित करने वाला दुनियावी अहंकार हिरनों के सींग की तरह है।

तुम भी अपने पर जितना ही अधिकाधिक गर्व करोगे उतना ही अपने अन्दर व्याकुल होओगे। जैसे कि हिरन की सींग जितनी ही बढ़ती है उतना ही अपने ही अन्दर गोल गोल घूमती रहती है।

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शेर में बात हिरन की है लेकिन चित्र बकरी की एक प्रजाति मारख़ोर (مارخور) का है। मारख़ोर को पाकिस्तान में राष्ट्रीय पशु का दर्जा प्राप्त है।

पशु और बाहर की फ़ोटो हो सकती है

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प्रेमारम्भेषु नौ योऽभूत् सान्द्रः स्त्यानो घनो रसः।

आजीवं व्यस्तरिष्याव तनूकृत्य तमेव चेत्! ||

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प्रेम के शुरू शुरू में

हम दोनों में

जो गाढ़़ा-घना रस था

काश,

उसी को घोल कर हम

अपने सारे जीवन में फैला सकते!

2 लोग और पाठ की फ़ोटो हो सकती है

1 व्यक्ति, दाढ़ी और खड़े रहना की फ़ोटो हो सकती है

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“वर्तमान में सांस्कृतिक विश्व दो ध्रुवों में बँटा हुआ है – एक पैगन संस्कृति है, दूसरी गैर पैगन संस्कृति। एक बहुलतावादी परम्पराओं को पोसने वाली संस्कृति है, दूसरी एकाधिपत्य को। साहित्य के क्षेत्र में भी गैर पैगन संस्कृति एक पाठ पर बल देती है, जब कि पैगन संस्कति बहुपाठीयता को स्वीकार करती है। संसार में पैगन संस्कृति और गैर पैगन संस्कृति ये दो संस्कृतियाँ हैं।”

ये विचार प्रो, वागीश शुक्ल ने गोकुल जनकल्याण समिति के द्वारा आयोजित श्रीगोकुलजन्मोत्सव के अवसर पर पूर्ण सरस्वती सम्मान ग्रहण करते हुए व्यक्त किये।

प्रो, शुक्ल ने कहा कि आम तौर पर जो पुरस्कार दिये जाते हैं, वे बड़े प्रतिष्ठानों की ओर से राजनैतिक दृष्टि से प्रभावशाली व्यक्तियों के द्वारा दिये जाते हैं। यह सम्मान एक सारस्वत साधक की स्मृति में एक सारस्वत साधक की ओर से दिया जा रहा है – यह मेरे लिये गौरव की बात है और मैं इसे विनम्रता पूर्वक स्वीकार करता हूँ।

भोपालस्थित होटल ओशन पर्ल

के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में गोकुल जन कल्याण समिति की ओर से आचार्य गोकुल प्रसाद त्रिपाठी के जन्म दिवस पर २० फरवरी २०२१ के दिन एक भव्य आयोजन किया गया। समिति की ओर से वर्ष २०२१ का पूर्णसरस्वती सम्मान प्रोफेसर वागीश शुक्ल को प्रदान किया गया।

इस अवसर पर संस्कृत के युवा कवि डा. कौशल तिवारी को आचार्य गोकुल प्रसाद त्रिपाठी संस्कृत सम्मान से अलंकृत किया गया। डा. कौशल तिवारी ने अपने वक्तव्य में अपनी काव्ययात्रा पर प्रकाश डाला तथा संस्कृत में अनेक हाइकू छन्द और गुलिका (बन्दूक) तथा दलितविमर्श से जुड़ी अपनी रचनाओं का हिन्दी अनुवाद के साथ पाठ किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. क्षेत्रवासी पंड्या ने प्रो. वागीश शुक्ल के गहन चिन्तन और कवि कौशल तिवारी की कविताओं की सराहना की। उन्होंने कहा कि इन दोनों सम्मानों के द्वारा प्रतिभा का सम्मान किया गया है। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर सुबोध कुमार शर्मा ने आचार्य गोकुल प्रसाद त्रिपाठी को एक पुण्यपुरुष बताया। उन्होंने पूर्व में गोकुल जन कल्याण समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम की चर्चा की तथा आचार्य त्रिपाठी के व्यक्तित्व की महत्ता पर प्रकाश डाला।

. वागीश शुक्ल तथा डा. कौशल तिवारी का परिचय तथा प्रशस्ति वाचन प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने किया। उन्होंने कहा कि वागीश जी साहित्य जगत् के गहरे अध्येताओं और विमर्शकारों में हैं। प्रखर आलोचक और उपन्यासकार शुक्ल जी ने निराला की राम की शक्तिपूजा की एक विलक्षण व्याख्या सम्पूर्ण शास्त्रपरम्परा, तन्त्र तथा वेदान्त के आलोक में की है।

डा. कौशल तिवारी का परिचय देते हुए प्रो, राधावल्लभ त्रिपाठी ने बताया कि श्री तिवारी पंड्या संस्कृत के तेजस्वी युवा कवि, प्रखर आलोचक तथा गंभीर अध्येता हैं। आपको साहित्य अकादेमी के युवा साहित्यकार पुरस्कार, राजस्थान शासन के संस्कृतयुवप्रतिभा पुरस्कार , साहित्यश्रीसम्मान आदि से नवाजा जा चुका है। संस्कृत में आपके तीन कवितासंग्रह तथा अनेक अनूदित कृतियाँ प्रकाशित हैं।

सम्मान समारोह के अवसर पर ही डा. बलराम शुक्ल ने गोकुल जन कल्याण समिति की ओर से प्रो वागीश शुक्ल के दिल्ली स्थित आवास स्थान पर पहुँच कर उन्हें प्रशस्तिपत्र तथा सम्मान राशि भेंट की।

इस अवसर पर मुंबई के गायक कलाकार चिन्मयी त्रिपाठी तथा श्यामक मुखर्जी ने आचार्य गोकुल प्रसाद त्रिपाठी द्वारा प्रणीत भजन राम हो रहीम हो या सृष्टिकार हो की सरस संगीत प्रस्तुति से श्रोता समाज को भावविभोर कर दिया। आचार्य त्रिपाठी के पौत्र उत्कर्ष तथा चिराग और पौत्रियों शाम्भवी, माण्डवी और उदिता ने उनकी सुप्रसिद्ध काव्यकृति अभिनवसतसई से चुने हुए कतिपय दोहों का मनोहारी पाठ किया।

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर के नाट्यशास्त्र अनुशीलन केंद्र के सहनिदेशक तथा गोकुल जन कल्याण समिति की कार्यकारिणी के सदस्य श्री हरीश मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

इस कार्यक्रम में प्रत्यक्ष उपस्थित होने वाले श्रोताओं में अशोक दुबे, सम्पादक विप्रवाणी, संजय दुबे, प्राध्यापक, रवीन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल; श्रीमती कौशल तिवारी, अश्विनी त्रिपाठी (बाराँ, राजस्थान) तथा आचार्य गोकुल प्रसाद त्रिपाठी के परिवार के अनेक सदस्यो की भागीदारी रही। देश और विदेश के गणमान्य विद्वानों तथा बुद्धिजीवियों ने आन लाइन माध्यम से भी इस कार्यक्रम का अवलोकन किया। इनमें प्रो. देवेन्द्र शुक्ल (दिल्ली), प्रो. पी. पी. वशिष्ठ तथा प्रो. निशा वशिष्ठ (उज्जैन), श्री मधूदन मुखर्जी तथा हिमानी मुखर्जी (कलकत्ता), प्रो. माधव हाड़ा (उदयपुर), प्रो. रमाकांत पांडेय (आचार्य, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर), प्रो. भागीरथि नन्द (आचार्य, श्री लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली), डा. बलराम शुक्ल (दिल्ली विश्वविद्यालय) आदि लगभग साठ बुद्धिजीवी, साहित्यकार और समीक्षक आन लाइन माध्यम से इस कार्यक्रम से जुड़े रहे।

उक्त जानकारी देते हुए गोकुल जनकल्याण समिति के अध्यक्ष प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने बताया कि पूर्णसरस्वती सम्मान प्रतिवर्ष गोकुल जनकल्याण समिति द्वारा संस्कृत या हिंदी के किसी गौरवग्रंथ पर संस्कृत या हिंदी में विशद टीका लिखने वाले किसी विद्वान् को दिया जाता है। इस सम्मान के अंतर्गत सम्मानित विद्वान् को ५०,००० रुपये की राशि प्रशस्तिपत्रसहित भेंट की जाती है। आचार्य गोकुलप्रसाद त्रिपाठी संस्कृत सम्मान प्रतिवर्ष ४५ वर्ष से कम आयु के संस्कृत के पंडित या कवि को शास्त्रचिंतन अथवा संस्कृत काव्यरचना में असाधारण उपलब्धियों के लिये दिया जाता है। पूर्णसरस्वती सम्मान वर्ष २०२२ के लिये चयनसमिति की बैठक दिनांक को आन लाइन माध्यम से दिनांक ११.०१,२०२२ को सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर माधव हाड़ा, भूतपूर्व आचार्य तथा अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ने की। समिति के अन्य सदस्य थे –बर्कतुल्लाह विश्वविद्यालय के तुलनात्मक भाषा और संस्कृति भाग में संस्कृत के आचार्य प्रोफेसर क्षेत्रवासी पंडा तथा उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फैलो डा.बलराम शुक्ल। समिति ने सर्वसम्मति से निराला की कालजयी रचना राम की शक्तिपूजा पर छन्द छन्द पर कुंकुम नाम से विशद टीका की रचना के द्वारा टीकासाहित्य में असाधारण योगदान के लिये पूर्णसरस्वती सम्मान वर्ष २०२२ डा. वागीश शुक्ल को दिये जाने की संस्तुति की।

आचार्य गोकुलप्रसाद त्रिपाठी संस्कृत सम्मान वर्ष २०२२ के लिये चयनसमिति की बैठक आन लाइन माध्यम से दिनांक १२.०१,२०२२ को सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर रमाकान्त पाण्डेय, आचार्य, संस्कृत साहित्य विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर ने की।समिति के अन्य सदस्य थे – डा. बलराम शुक्ल। तथा डा. प्रवीण पंड्या। समिति ने सर्वसम्मति से आचार्य गोकुलप्रसाद त्रिपाठी संस्कृत सम्मान वर्ष २०२२साहित्य अकादेमी द्वारा युवासाहित्यकार पुरस्कार तथा अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात युवा संस्कृत कवि तथा विद्वान् डा. कौशल तिवारी को दिये जाने की संस्तुति की।

आचार्य शुक्ल के लिए अद्भुत शब्द “यथार्थाक्षर” है। वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में गणित के आचार्यत्व से निवृत्त हुए। उर्दू, हिन्दी, अंग्रेज़ी आदि आधुनिक तथा संस्कृत, फ़ारसी जैसी क्लासिकल भाषाओं, साहित्य और उनकी विचार सरणियों का दुर्लभ ज्ञान उनके पास है। सम्भवतः इसीलिए वे हिन्दी के ‘तीक्ष्णतम सिद्धान्तकार’ कहे जाते हैं। भारतीय साहित्य के जटिलतम कवियों, चाहे वे श्रीहर्ष हों, बेदिल हों अथवा ग़ालिब, पर लेखनी चलाने का सामर्थ्य वर्तमान में वागीश शुक्ल जैसे ‘मुश्किल–पसंद’ आलोचक में ही है।

आचार्य शुक्ल को उपर्यु्क्त सम्मान निराला की कालजयी कृति राम की शक्तिपूजा पर उनके विशद भाष्य छन्द छन्द पर कुंकुम के लिए दिया गया। पुरस्कार के अवसर पर उनका छोटा लेकिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाषण अवश्य सुनें–

आनन्द का दूसरा बड़ा कारण यह रहा कि बन्धुवर कौशल तिवारी जी को आचार्य गोकुल प्रसाद त्रिपाठी संस्कृत सम्मान दिया गया। इस अवसर पर उनकी कविताएँ सुनने का सुन्दर अवसर हाथ आया। उन्हें बहुत बहुत बधाइयाँ।

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دلم چو عرش معلی است رشک دیر و کنشت

تورا اله بسازم بیا فرشته سرشت

[दिलम् चु अर्शे मुअल्ला-स्त रश्के दैरो कनिश्त

तो-रा इलाह ब-साज़म बिया फ़रिश्ते-सरिश्त ]

【स्वोपज्ञ】

= मेरा हृदय परम आकाश की भाँति इतना ऊँचा हो गया है कि उससे मन्दिर और मस्जिद सभी इमारतें ईर्ष्या कर सकें।

हे मेरे देवताओं जैसे गुणों वाले (प्रिय) आओ, मैं तुम्हें यहाँ परमेश्वर के पद पर प्रतिष्ठित कर लूँ!

(चित्र आकाशवाणी की दरी [फ़ारसी ] सेवा के लिए आज रिकॉर्ड फ़ारसी मुशायरे का है। फ़ारसी के ६ युवा और उम्दा कवियों को सुनने और अपनी कविता सुनाने का सुहाना अवसर था!)

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