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Posts Tagged ‘विश्वविद्यालयी लेक्चर’

प्राकृत भाषाएँ हमारी आधुनिक भारतीय भाषाओं की माँएँ हैं। प्रस्तुत शोध प्राकृत भाषा में निबद्ध समृद्ध काव्य परम्परा की मौलिक विशेषताओं को पहचान कर उपस्थापित करने का एक विनम्र प्रयास है। यह अनुसन्धान प्राकृत काव्यालोचन के उन विशिष्ट भाषिक अभिलक्षणों पर केन्द्रित है जो अब तक ठीक तरह से प्रस्तुत नहीं हो सके हैं। इस कार्य में प्राकृत काव्य सौन्दर्य के भाषिक आधार का एक सुव्यवस्थित ढाँचा सामने रखा गया गया है।

शोध के क्रम में भारतवर्ष की चिरन्तन भाषिक चर्या तथा इसकी समाजभाषिकी विषयक प्रचलित धारणाओं पर आधारभूत तथ्यों तथा मूल सामग्री के आलोक में सप्रमाण विचार भी किया गया है। शोध के अन्तर्गत प्राकृत भाषा तथा साहित्य से सम्बन्धित नव-नवीन शोध की दिशाएँ भी प्रकाशित होती हैं। साथ ही परिशिष्ट के रूप में प्राकृत भाषा में २२ काव्य ग्रन्थों से ९२९५ पद्यों में से १५६१ सुन्दरतम पद्यों को चुनकर उन्हें संस्कृत छाया के साथ संगृहीत किया गया है। यह इस शोध कार्य की अतिरिक्त उपलब्धि है।

अध्येता के रूप में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में यह मेरी तीसरी और अन्तिम प्रस्तुति है। अलंकार आदि संस्कृत शास्त्रों के विद्वान् तथा प्राकृत के मर्मविद् डॉ॰ Umesh Nepal जी सत्र की अध्यक्षता करेंगे।

इस चर्चा में जुड़ने के लिए कड़ी है–https://www.facebook.com/IIAS.shimla

सुन्दर पोस्टर के लिए Gaurav जी को धन्यवाद!

2 लोग और वह टेक्स्ट जिसमें 'भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान प्रस्तुति: प्राकृतकविता के चारुत्व के भाषिक आधार तिथि-१२.०१.२०२२, समय-११.०० बजे पूर्वाह डॉ. बलराम शुक्ल (अध्येता, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान) वार्तालाप शामिल होने https://w.facebokcom/l.shima/ अध्यक्षता- डॉ. उमेश नेपाल (जगदूरु रामानन्दाचाये संस्कृत विष्वविघालय, जयपुर)' लिखा है की फ़ोटो हो सकती है

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संस्कृत वाङ्मय : विस्तार एवं सातत्य

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परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ!

(भगवद्गीता ३.११)

देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति ।
सा नो मन्द्रेषमूर्जं दुहाना धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु ॥
– ऋग्. ८.१००.११॥

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भारत की सनातन भाषिक-चर्या तथा प्राकृत

https://www.youtube.com/watch?v=4vhKKRVq9U0

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संस्कृत तथा फ़ारसी के मध्य संरचनात्मक समानताएँ। (फ़ारसी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, २५.०२.२०२२)

This lecture in Hindi was organized by the Department of Persian, the University of Delhi on 25.02.2022. The relationship of old Persian and Sanskrit literary traditions has been noted on cultural and linguistic planes. In spite of a huge gap of almost 1000 years and drastic cultural and linguistic changes, modern Persian still bears astonishing affinities with Sanskrit on Phonetic, Morphological, and other linguistic dimensions. Persian has preserved the inflecting nature of ancient languages to some extent, which, even Aryan languages like Hindi are lacking in. In this talk, I will be elaborating on the extent of intrinsic similarities of modern Persian and Sanskrit with special reference to morphology. It is interesting to note that various verbal and nominal morphemes and the suffixes thereof are still there in Persian. Our discussion covers topics including, but not limited to, different aspects of verbal roots and verbal Conjugation, verbal derivatives, different kinds of secondary nominal bases, various sorts of compounds, and prepositions.

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“प्राकृत काव्य के आलोक में भारतीय काव्यशास्त्र का पुनरवलोकन”

(श्री ला.ब.शा. रा. सं. विद्यापीठ, १६.०३.२०२२)

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अचिरप्रवृत्तं नवसंवत्सरोत्सवं संलक्ष्य!

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